अर्थी लेकर किस ओर चलें
कवि श्री अमरबहादुर सिह “अमरेश” द्वारा सरदार पटेल को दी गई श्रध्धांजलि
अर्थी लेकर किस ओर चलें,
उत्तर में रोता है हिमगिरि अविरल आंसू की धार लिये।
दक्षिण में हिंदमहासागर रोता जीवन के ज्वार लिये।
कृष्णा, कावेरी, महानदी की मंद त्रिधारा रोती है।
उत्तर प्रदेश की छाती में गंगा की धारा रोती है।
किसकी आंखो के आंसू में हम अपनी धाती बोर चलें।
अपने उर के अरमानों की अर्थी लेकर किस ओर चलें।
विधवा हो गयी बारडोली आजादी का सिंदुर लुटा।
लुट गया किसानों का किसान मज्दूरों क मज्दूर लुटा।
वह कर्णधार केशव रण के पश्चात पार्थ को भूल गया।
सुकरात चल पडा विष पीकर ईसा फांसी पर झुल गया।
रोकर दुखिया दिल्ली कहती साहस किस तर बटोर चलें।
भारत के भाग्य विधाता की अर्थी लेकर किस ओर चलें।
गुजरात तुम्हारी नहीं आज भारत की किस्मत फुट गयी।
युग का प्रहार सहने वाली चट्टान बीच से टूट गयी।
जब युगाधार की सांस रुकी तब काल स्वयं क्यो रुका नही।
झुक गया विश्व झुक गयी धरा पर नभ मंडल क्यों झुका नही।
टुट गया तीर खाली तरकश अब किसकें सम्मुख छोर चलें।
आकाश बता आशाओं की अर्थी लेकर किस ओर चलें।
हे राजघाट की श्मशान तुम भूली युग के खेल नही।
जा राष्ट्रपिता से कह देना जीवित सरदार पटेल नही।
सोनापुर के सूने मरघट, यह बाती मेरी ले जाओ।
बदले में तुम केवल पटेल का साहस मुझको दे जाओ।
जिससे युग सागर की कल्मष काई को हम हिलकोर चलें।
अपने ही कंधे पर अपनी अर्थी लेकर किस ओर चलें।
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