Sardar Patel says a lot in Few Words
सरदार पटेल थोड़े में बहुत कुछ कहने की क्षमता रखते थे।
विधान सभा के दौरान, भारतीय संविधान के अनुच्छेद ३७० के बारे
में चर्चा हो रही थी, उस चर्चा में शेख अब्दुल्ला भी हाज़िर थे
और ज़ाहिर है की यह चर्चा के दौरान वे अशांत रहे होंगे और अचानक अब्दुल्ला सदन में
खड़े होकर के बोले " मै कश्मीर वापस जा रहा हूं। यह बात
सबको हैरान करने वाली थी और सदन का अपमान करने जैसा था; इस व्यवहार
से भारत को कश्मीर के बारे में चर्चा करने के अधिकार पर भी सवाल खड़ा हो गए,
युंकी अब्दुल्ला के विचार सिर्फ और सिर्फ नेहरू तक ही सीमित थे। नेहरू
इस समय भारत में नहीं थे इसलिए वे अब्दुल्ला के बचाव में नहीं आ सकते थे । नेहरू की
उपस्थिति न होने के कारण सरदार पटेल प्रधानमंत्री के तौर पर थे, और इस परिस्थिति को निपटना था । लेकिन उन्होंने बहस के बीच में अपना हस्तक्षेप
करना उचित नहीं समझा। शाम को पटेल ने त्यागी को अपना दृढ़ संदेश लेकर रेलवे स्टेशन
भेजा । शेख अब्दुल्ला अभी अभी डिब्बे में बैठे ही थे और त्यागी ने पटेल का भेजा हुआ
संदेश कहा कि
शेख साहिब, सरदार ने कहा है कि आप सदन छोड़ के जा सकते हो लेकिन दिल्ली छोड़कर नहीं जा सकते।
यह एक वाक्य से शेख अब्दुल्ला बात की गंभीरता समझ गए और यह भी
समझ आया कि पटेल नेहरू की अनुपस्थिति में कुछ भी कर सकते है । डर के मारे वे तुरंत
ही डिब्बे से उतर गए और अपना कश्मीर जाना रद्द कर दिया। पटेल बखूबी जानते थे कि अब्दुल्ला
के दबाव में आकर नेहरू ने कश्मीर की बागडोर उनके हाथों से वापिस ले ली थी फिर भी पटेल
जैसा अनुशासित व्यक्ति कभी भी अपनी सीमा नहीं लांघता था।
१९४७ की शुरूआत
थी और जिन्नाह श्रीनगर पर विजय पाने की ख्वाहिश लेकर, जिन्नाह अबोताबाद में विजयी होकर कश्मीर में प्रवेश करने की उम्मीद लगाए बैठे
थे और इस तरफ व्यक्तिगत तौर पर अपमानित महसूस कर रहे शेख अब्दुल्ला पहले हुए हमलो की
यादों से पीडित थे। कश्मीर के इस संकट की घडी में, लोगो को सामने
खडी मुसीबत से बचाने पटेल ४ नवंबर को अपने रक्षा मंत्री बलदेव सिन्ह को लेकर श्रीनगर
पहुचे। सफर के दौरान मौसम बहुत खराब था और इस मौसम मे कुछ भी दिखाई नही दे रहा था, और ऐसे में हवाई जहाज पाकिस्तान में भी उतर सकता था, जिसका बहुत घातक परिणाम आ सकता था, फिर पायलट की सुझबुझ
से हवाई जहाज सुरक्षा पुर्वक भारत की सीमा में उतारा । और बिना समय गवाए पटेल काम में
जुट गये, सैन्य कार्यवाही के अध्यक्ष १६१ ब्रिगेड के कमांडर
ब्रिगेडियर एल.पी. सेन घटना का पुरा ब्योरा दे रहे थे, उस
दौरान पटेल अपनी आंखे बंध करली, सबको लगा कि पटेल सफर की
थकावट से नींद आ गयी है। ब्रीफींग खत्म होने के बाद एल.पी. सेन ने सरदार बलदेव
सिंह से पुछा कि क्या मुझे परिणामो की परवाह किए बिना किसी भी हाल में उन
आदिवासियों को घाटी से निकाल बाहर करना है या फिर श्रीनगर शहर को ध्यान मे रखते
हुए बचाने की कार्यवाही करनी है? सरदार पटेल थोडे हिले तब
पता चला कि शेर सो नही रहा था लेकिन वह अक्षरस: सब सुन रहा था और उन्होने तुरंत
कहा कि “ बेशक श्रीनगर को बचाना है।“ उनके प्रत्युत्तरमें मैंने कहा मुझे और सैनिक
टुकडियों के जरूरत पडेगी, और साथ तोपें भी चाहिए और यह सब मुझे
जितनी जल्दी मिले उतना अच्छा। पटेलने कहा आप को जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी आपको
सब मिल जाएगा जितनी आपको आवश्यक्ता है। और उसी शाम मुझे संदेशा मिला कि पैदल सेना की
दो बटालियन, टेंको के एक स्क्वाडृन और तोप सेना घाटी की और प्रस्थान
होने के आदेश दिए गये है।
पटेल हालात
को बखुबी समझते थे और जिस हालातमें जो हो सक्ता है वह वे करने की पुरी तैयारी भी करते, और साथ साथ बहुत कम शब्दो में वे बहुत कुछ कह भी देते। इस वजह से उनकी बातें
कुछ लोगों को अच्छी लगती और कुछ लोगों विरोध भी करते।
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