Kashmir Problem
जम्मु तथा काश्मीर शुरूसे ही स्वतंत्र रहना चाहता था । और इसी वजह से महाराजा निर्णय नही ले पा रहे थे, इसी बीच कबाईलीयो की सेनाने जम्मु काश्मीर पर आक्रमण कर दीया। उस समय महाराजा हरिसिन्ह के पास सैनिक शक्ति नाम मात्र की थी। अपनी प्रजाका विनाश महाराजा नही देख सके और उन्होने सरदार पटेल का संपर्क किया। काश्मीर के महाराजा हरिसिन्ह अपने परिवारके साथ श्रीनगर से दिल्ही आकर सरदार पटेल के अनुरोध से २६ अक्तुबर १९४७ को भारत के विलिनिकरण के समझोतेके दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिये, क्योकि समझोतेके दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए बगैर भारत सरकारभी काश्मीरकी रक्षा करने मै असमर्थ थी। भारतने काश्मीर की रक्षा के लिए अपनी सेना विमानोके द्वारा भेजी, जिसने कबाईलीओ को पीछे खदेड दिया। और पाकिस्तानकी सैनाभी लडाईके मेदानमे आ गई। इस पर नेहरूजीने सरदार पटेल के विरोध के बावझुद पाकिस्तान द्वारा काश्मीरमे हस्तक्षेप करने की शिकायत सयुक्त राष्ट्र संघ परिषद मे की। उस वक्त ब्रिटेन और अमरीकाने पाकिस्तान का पक्ष लिया और उसे काश्मीर मे पाकिस्तान का आक्रमण न मान कर भारत पर दबाव डाला कि वह काश्मीर के विषय मे पाकिस्तान के साथ सम्झोता कर ले।
१८ नवम्बर १९४९ को काश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्लाने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरूके सम्मान में काश्मीर गवर्न्मेंट कला भवन मै एक भोजन दिया, जिसमें सरदार पटेलने बख्शी गुलाम मुहम्मद के साथ काश्मीर के भविष्य के सम्बंध मे वार्तालाप किया। इससे पूर्व सरदार पटेलने महात्मा गांधी से कई बार कह चुके थे कि शेख अब्दुल्ला विश्वासनीय नही है, किंतु नेह्रूजीने यह बात देखी अनदेखी कर दी। इस दौरान काश्मीर सविंधान परिषद अपना नया विधान बना चुकी थी और उस विधान के अनुसार काश्मीर में वहा का युवराज कर्णसिन्ह वहा का शासन कार्य चला रहे थे। १४ नवम्बर १९५२ की कश्मीर सविधान परिषदने उनको अपना प्रथम “सदरे रियासत” चुना, और उन्हे भारत के राष्ट्रपति डा. राजेंद्रप्रसादजीने १५ नवम्बर १९५२ को स्वीकृति दे दी।
३ जून को काश्मीर जेल में डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी का स्वर्गवास हुआ। और इस समय काश्मीर के मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला अपना विश्वास काशमीरकी जनता से खो चुके थे। इस वजह से सदरे रियासत युवराज कर्णसिन्हने उनकी जगह ९ अगस्तको बख्शी गुलाम मुहम्मद को नया मुख्य मंत्री बनाया। बख्शी गुलाम मुहम्मदने मुख्य मंत्री बनते ही ९ अगस्तको शेख अब्दुल्ला को अपने ३० साथियो के साथ पाकिस्तान भागते हुए गुलमर्ग मे गिरफ्तार करवाया। और शेखअब्दुल्ला नजरबंद थे और शेख अब्दुल्लाके उपर मुकदमा भी चलाया गया, जिस पर भारत सरकार के करोडो रूपिया खर्च हो चुके।
अब काश्मीर सविंधान परिषदने काश्मीरका सविधान बनाने का कार्य अपने हाथो मे लिया। उसने नवम्बर १९५६ मे निर्णय किया कि काश्मीर भारत का अभिन्न अंग रहेगा। काश्मीरकी भावी विधानसभामे पाकिस्तान अधिकृत काश्मीर के प्रतिनिधियों के लिए भी स्थान सुरक्षित किया गया। और २७ जनवरी १९५७ को यह सविधान काश्मीर पर लागु किया गया। इसके बाद काश्मीर सविधान परिषद भंग हो गई। काश्मीर सविधान परिषद के सदस्योने इस सविधान की चार प्रतियो पर १९ नवम्बर १९५६ को हस्ताक्षर किये थे।
इस लिए पाकिस्तान का काश्मीर मे जनमत कराने का आग्रह किसी प्रकार उचित नही है। सरदार पटेल का सुझाव था कि काश्मीर की विशेष स्थिति को समाप्त कर उसे भारतमे पूर्णत: मिला कर वहा शरणार्थियो को बसाया जाए और वहा जाने की पाबंदी अन्य भारतीयो पर लगाई हुई है उसे हटाया जाए। किन्तु जवाहर नहेरूने सरदार पटेलके इन दोनो सुझावो को अस्वीकार कर दीया।
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